जयंती गुरू घासीदास बाबा जयंती पर श्रद्धालु मनोकामना के लिए भुईयां लोट मारते पहुचें गिरौदपुरी

गिधौरी। संत बाबा गुरूघासीदास की जन्म एवं तपोभूमि धाम में 18 दिसंबर को जन्म जयंती मनाने हजारों श्रद्धालु पहुंचे ।और गिरौदपुरी जन्मभूमि एंव तपोभूमि में मनाई गई बाबा जी की जयंती ।कई श्रद्धालु मनोकामना के लिए भुईयां लोट मारते हुए पहुंचे और दर्शन करने के लिए छाता पहाड ,पंचकुंडीय ,,जन्म स्थल , सफुरा तालाब ,अमृत कुंड चरण कुंड में श्रद्धालुओं की तांता लगा रहा । और पिछले वर्ष से इस वर्ष ज्यादा श्रद्धालुओं रेलमपेल भीड जुटे हुए थे गुरू घासीदास बाबा जी की 268 वीं जयंती के अवसर पर प्रशासनिक व्यवस्था साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से बडी संख्या में पुलिस बल की व्यवस्था की गई थी ।हर वर्ष यहां मेले का आयोजन भी किया जाता है ।बाबा गुरूघासीदास ने सनातन धर्म के लिए मनखे मनखे एक समान का नारा दिया था समाज के लोग इस दिन बडे उत्साह के साथ बाबा गुरूघासीदास की जयंती पर जगह जगह जैतखाम की पुजा अर्चना कर श्वेत झंडा चढाया गया । सुबह से ही गिरौदपुरी धाम बाबा गुरूघासीदास के अनुयायी गुरुगद्दी पर माथा टेकने पहुंचे और सुख समृद्धि की कामना की। इस दौरान बडी संख्या में कार,जीप ,बस ,पिकअप,मेटाडोर मोटर साइकिल ,आटो ,इत्यादि वाहनों से दर्शनार्थी पहुंचे हुये थे।

18 दिसम्बर 1756 को बाबा गुरूघासीदास जी का जन्म हुआ था

18 दिसंबर 1756 को गुरु घासीदास का जन्म ऐसे समय हुआ जब समाज में ऊंच-नीच, छुआछूत, झूठ और कपट का बोलबाला था। उनका जन्मस्थान छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में(अब बलौदाबाजार जिले के ) गिरौद नामक ग्राम में बताया जाता है। पिता मंहगू दास तथा माता अमरौतिन के घर जन्मे गुरु घासीदास ने समाज को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उनकी सत्य के प्रति अटूट आस्था थी, उसी कारण उन्होंने बचपन में कई चमत्कार दिखाए, जिसका लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा।

घासीदास जी ने जहां समाज में एकता बढ़ाने का कार्य किया, वहीं भाईचारे और समरसता का संदेश भी दिया। उन्होंने न सिर्फ सत्य की आराधना की, बल्कि समाज में नई जागृति पैदा करने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग उन्होंने मानवता के सेवा कार्य के लिए किया। उनके इस व्यवहार और प्रभाव के चलते लाखों लोग उनके अनुयायी बन गए और इस तरह छत्तीसगढ़ में ‘सतनाम पंथ’ की स्थापना हुई।

सतनाम संप्रदाय के लोग गुरु घासीदास को अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं। उन्होंने अपनी तपस्या से अर्जित की शक्तियों से कई चमत्कारिक कार्य करके लोगों को दिखाएं। समाज के लोगों को उनके द्वारा दिया गया प्रेम, मानवता का संदेश और उनकी शिक्षा आज भी प्रासंगिक है। उनके भक्त मानते हैं कि गुरु घासीदास जी द्वारा बताया गया रास्ता अपना कर ही अपने जीवन तथा परिवार की उन्नति हो सकती है। गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके 7 वचन सतनाम पंथ के ‘सप्त सिद्धांत’ के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इसलिए सतनाम पंथ का संस्थापक भी गुरु घासीदास को ही माना जाता है।

चरण कुंड ,अमृत कुंड छाता पहाड में लगी रही भीड

गुरु घासीदास की जन्मस्थली एवं तपोभूमि एवं सतनामी समाज का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल गिरौदपुरी में भक्तों का मेला लगता हैं, जहां उनके चरणकुंड, अमृतकुंड, छाता पहाड़ आदि स्थलों के दर्शन वे लाभ लेते हैं। गुरु घासीदास की जयंती पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में 18 दिसंबर से करीब एक माह तक बड़े पैमाने पर उत्सव के रूप में पूरे मनाई जाती है। सद्विचार तथा एकाग्रता बढ़ाने के लिए बाबा घासीदास की जयंती मनाना अतिआवश्यक हो जाता है, क्योंकि इससे लोगों को सद्कार्य करने की प्रेरणा मिलती हे।

घासीदास जयंती पर उनके भक्त पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ उनके मुख्य मंदिर में स्थित जैतखांब (जैतखंभ) को लंबी दूरी से दंडवत प्रणाम करते हुए गिरौदपुरी पहुंचते है। उनके भक्त मानते हैं कि ऐसा करने से उनके शरीर को कोई कष्ट नहीं होता, बल्कि उनके मन को शांति मिलती है । घर परिवार और संतान की कामना से उसके कई भक्त बाबा गुरुघासीदास की जयंती पर उनके यहां मत्था टेकने जाते है । 18 दिसंबर को उनकी जयंती पर जहां विविध कार्यक्रमो का आयोजन किया जाता वही पंथी की धुम रही।

बाबा ने दिया समरसता का संदेश

घासीदास ने जहां समाज में एकता बढाने का कार्य किया वही भाईचारे और समरसता का संदेश भी दिया। उन्होंने न सिर्फ सत्य की आराधना की बल्कि समाज में नई जागृति पैदा करने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग उन्होंने मान्यता के सेवा कार्य के लिए किया ।उने इस व्यवहार और प्रभाव के चलते लाखों लोग उनके अनुयायी बन गए और इस तरह छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ की स्थापना हुई।

 

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